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अक्र॑न्दद॒ग्नि स्त॒नय॑न्निव॒ द्यौः क्षामा॒ रेरि॑हद् वी॒रुधः॑ सम॒ञ्जन्। स॒द्यो ज॑ज्ञा॒नो वि हीमि॒द्धोऽअख्य॒दा रोद॑सी भा॒नुना॑ भात्य॒न्तः ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अक्र॑न्दत्। अ॒ग्निः। स्त॒नय॑न्नि॒वेति॑ स्त॒नय॑न्ऽइव। द्यौः। क्षामा॑। रेरि॑हत्। वी॒रुधः॑। स॒म॒ञ्जन्निति॑ सम्ऽअ॒ञ्जन्। स॒द्यः। ज॒ज्ञा॒नः। वि। हि। ई॒म्। इ॒द्धः। अख्य॑त्। आ। रोद॑सी॒ इति॒ रोद॑सी। भा॒नुना॑। भा॒ति॒। अ॒न्तरित्य॒न्तः ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्यों को कैसा होना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (द्यौः) सूर्यलोक (अग्निः) विद्युत् अग्नि (स्तनयन्निव) शब्द करते हुए के समान (वीरुधः) ओषधियों को (समञ्जन्) प्रकट करता हुआ (सद्यः) शीघ्र (हि) ही (अक्रन्दत्) पदार्थों को इधर-उधर चलाता (क्षामा) पृथिवी को (रेरिहत्) कंपाता और यह (जज्ञानः) प्रसिद्ध हुआ (इद्धः) प्रकाशमान होकर (भानुना) किरणों के साथ (रोदसी) प्रकाश और पृथिवी को (ईम्) सब ओर से (व्यख्यत्) विख्यात करता है और ब्रह्माण्ड के (अन्तः) बीच (आभाति) अच्छे प्रकार शोभायमान होता है, वैसे तुम लोग भी होओ ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर ने जिसलिये सूर्यलोक को उत्पन्न किया है, इसलिये वह बिजुली के समान सब लोकों का आकर्षण कर और सम्यक् प्रकाश देकर ओषधि आदि पदार्थों को बढ़ाने का हेतु और सब भूगोलों के बीच जैसे शोभायमान होता है, वैसे राजा आदि पुरुषों को भी होना चाहिये ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(अक्रन्दत्) गमयति (अग्निः) विद्युत् (स्तनयन्निव) यथा शब्दयन् (द्यौः) सूर्यः (क्षामा) पृथिवीम्। अत्र अन्येषामपि दृश्यते [अष्टा०६.३.१३७] इत्युपधादीर्घः, सुपाम्० [अष्टा०७.१.३९] इति विभक्तिलोपः (रेरिहत्) ताडयति (वीरुधः) ओषधीः। वीरुध ओषधयो भवन्ति विरोहणात् ॥ (निरु०६.३) (समञ्जन्) प्रकटयन् (सद्यः) शीघ्रम् (जज्ञानः) जायमानः (वि) (हि) प्रसिद्धौ (ईम्) सर्वतः (इद्धः) प्रदीप्यमानः (अख्यत्) ख्याति (आ) (रोदसी) प्रकाशभूमी (भानुना) किरणसमूहेन (भाति) राजति (अन्तः) मध्ये ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं यथा द्यौः सूर्योऽग्निस्तनयन्निव वीरुधः समञ्जन् सन् सद्यो ह्यक्रन्दत्। क्षामा रेरिहदयं जज्ञान इद्धः सन् भानुना रोदसी र्इं व्यख्यत्। ब्रह्माण्डस्यान्तरा भातीति तथा भवत ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - ईश्वरेण यदर्थः सूर्य उत्पादितः, स विद्युदिव सर्वान् लोकानाकृष्य, संप्रकाश्यौषध्यादिवृद्धिहेतुः सन् सर्वभूगोलानां मध्ये यथा विराजते, तथा राजादिभिर्भवितव्यम् ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वराने सूर्यलोक यासाठी उत्पन्न केलेला आहे की त्याने विद्युतप्रमाणे सर्व गोलांना आकर्षित करावे. औषधी (वृक्ष, वनस्पती) वगैरे वाढीचेही तोच कारण आहे. तो जसा सर्व भूगोलात उठून दिसतो तसेच राजा वगैरे पुरुषांनीही दिसावे.